Not known Details About Shodashi
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In A further depiction of hers, she's revealed like a sixteen-yr-previous younger and sweet Female decorated with jewels by using a dazzling shimmer in addition to a crescent moon adorned around her head. She's sitting on the corpses of Shiva, Vishnu, and Brahma.
सा नित्यं रोगशान्त्यै प्रभवतु ललिताधीश्वरी चित्प्रकाशा ॥८॥
The Mahavidya Shodashi Mantra aids in meditation, enhancing internal quiet and focus. Chanting this mantra fosters a deep perception of tranquility, enabling devotees to enter a meditative state and connect with their internal selves. This reward enhances spiritual consciousness and mindfulness.
सर्वानन्द-मयेन मध्य-विलसच्छ्री-विनदुनाऽलङ्कृतम् ।
सा नित्यं मामकीने हृदयसरसिजे वासमङ्गीकरोतु ॥१४॥
यह उपरोक्त कथा केवल एक कथा ही नहीं है, जीवन का श्रेष्ठतम सत्य है, क्योंकि जिस व्यक्ति पर षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी की कृपा हो जाती है, जो व्यक्ति जीवन में पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है, क्योंकि यह शक्ति शिव की शक्ति है, यह शक्ति इच्छा, ज्ञान, क्रिया — तीनों स्वरूपों को पूर्णत: प्रदान करने वाली है।
The selection of mantra style is not merely a make any difference of desire but displays the devotee's spiritual ambitions and the nature in their devotion. It is a nuanced facet of worship that aligns the practitioner's intentions Using the divine energies of Goddess Lalita.
संरक्षार्थमुपागताऽभिरसकृन्नित्याभिधाभिर्मुदा ।
It's drive that turns the wheel of karma, Which retains us in duality. It is actually Shodashi who epitomizes the burning and sublimation of these wants. It is she who permits the Functioning outside of old karmic patterns, bringing about emancipation and soul independence.
देवस्नपनं उत्तरवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि
यहां पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari kavach
वन्दे तामष्टवर्गोत्थमहासिद्ध्यादिकेश्वरीम् ॥११॥
तिथि — किसी भी मास की अष्टमी, पूर्णिमा और नवमी का दिवस भी इसके लिए श्रेष्ठ कहा गया है जो व्यक्ति इन दिनों में भी इस साधना को सम्पन्न नहीं कर सके, वह व्यक्ति किसी भी शुक्रवार को यह साधना सम्पन्न कर सकते है।
श्रीमत्सिंहासनेशी प्रदिशतु check here विपुलां कीर्तिमानन्दरूपा ॥१६॥